मिस्र सरकार तुरंत मज़ार-ए-पाक का दोबारा निर्माण करें – (मौलाना मुईन मियां)।

मिस्र सरकार तुरंत मज़ार-ए-पाक का दोबारा निर्माण करें – (मौलाना मुईन मियां)।

जानिए सूरह कहफ़ की 4 कहानियां और उसे पढ़ने के फायदे

सूरह अल कहफ़ पवित्र क़ुरान की 18 वीं सूरह हैं। ये क़ुरान के 15 और 16 पारे में मौजूद हैं। यानि के इस सूरह को आप क़ुरान के 15 वे और 16 वे  पारे में पढ़ सकते हैं। सूरह कहफ़ का मतलब होता है गुफा इस सूरह में कुल 110 आयतें, 1583 शब्द और 6425 अक्षर मौजूद हैं। ये मक्का में नाज़िल हुई थी इसलिए इसे मक्की सूरह भी कहा जाता हैं। इस सूरह में कहफ़ नाम एक गुफा में मौजूद लोगो की कहानी से लिया गया हैं। इस सूरह में 4 अलग अलग कहानियों का ज़िक्र आया हैं ये चार कहानियों के नाम इस प्रकार हैं। 

ईद-ए-मिलादुन्नबी के जुलूस से अमन-शांति का संदेश दें – मौलाना मिस्बाही

जालना: हुजूर मोहम्मद (सअ) अमन और इंसाफ के पैगंबर बनकर दुनिया में तशरीफ़ लाए थे. आपका दुनिया में आना संपूर्ण इंसानियत के लिए अल्लाह का इनाम है. इसलिए ईद-ए-मिलादुन्नबी पर निकाले जाने वाले जुलूस के जरिए हमें अमन, शांति और इंसाफ का संदेश सभी धर्मों और नागरिकों तक पहुंचाना होगा. यह प्रतिपादन गुलजार मस्जिद के इमाम मौलाना गुलाम जिलानी मिस्बाही ने किया.

पैगंबर मोहम्मद पूरी कायनात के लिए रहमत – अल्लाह बख्श

जालना: पैगंबर मुहम्मद (स अ) के आने से पहले पूरी दुनिया कुफ्र, शिर्क, गुमराहीयत और बडे बडे गुनाहों में जकड़ी हुई थी. यहां तक की दूर दूर तक अमन शांती नजर नही आती थी. औरतों का कोई मुकाम नही था. यहां तक के औरत को इतना बुरा समझा जाता था कि बाप अपनी बेटी को अपने हाथों से जिंदा दफन कर दिया करते थे. शराब नोशी पानी की तरह पायी जाती थी. जिना(बलात्कार) आम था, बेवा औरतों को बहुत गलत निगाह से देखा जाता था. इसके अलावा बेशुमार गुनाहों का दलदल बना हुआ था. ऐसे मौके पर अल्लाह ने पैगंबर मुहम्मद (सअ) को पूरी कायनात के लिए रहमत बनाकर भेजा.

ईद ए मिलाद को लेकर विविध उपक्रम 

जालना: २८ सितंबर को ईद ए मिलाद के उपलक्ष्य में पिछले सप्ताह भर से बुºहाण नगर स्थित हसनिया मस्जिद में हर दिन ईशा की नमाज के बाद विशेष बयान हो रहे है. २७ सितंबर तक चलने वाले इस आयोजन में नागरिकों को बडी संख्या में उपस्थित रहने का आह्वान काझी अल्लाह बख्श अमजदी ने किया है.

मुहम्मद उमरैन रहमानी के दौरे को लेकर बैठक संपन्न

जालना: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव, मालेगांव स्थित खानखाए रहमानी के सज्जादा नशीन मुहम्मद उमरैन महफूज रहमानी १ अगस्त मंगलवार को जालना दौरे पर रहेंगे. इस दौरान शहर के नॅशनल नगर स्थित मस्जिद हजरत उमर बिन खत्ताब में एक दिवसीय इज्तेमा का आयोजन किया गया है. उनके दौरे की तैयारियों को लेकर मंगलवार १८ जुलाई को नॅशनल नगर में बैठक संपन्न हुई.

सुन्नते इब्राहीमी की अफजलियत से रोका जाना शरीयत के लिहाज से जुर्म

जालना: जालना शहर स्थित मस्जिद दरगाह राजाबाग शेर सवार में ईद की नमाज के पहले मार्गदर्शन करते हुए सैयद जमील मौलाना ने कहा की इबादत और कुर्बानी सिर्फ अल्लाह के लिए होती है इसलिए इसमें दिखावा ना हो. जो लोग कुर्बानी के पहले जानवरों को सजाना या हार पहनाना जैसे काम करते है वो सही नहीं है इसमें शिर्क का शुबा पैदा होता है. 

अराफात के मैदान पर चिलचिलाती धूप में की इबादत

जालना: हज के लिए दुनिया भर से पहुंचे हाजियों के साथ ही मंगलवार को हज के दूसरे दिन जालना के हाजियों ने भी अराफात के मैदान पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाते हुए चिलचिलाती धूप में कभी खड़े होकर तो कभी बैठकर इबादत करते हुए अपने रब से गुनाहों की माफी मांगी.

जानिए हज़रत इमाम हुसैन की पूरी कहानी (Hazrat Imam Hussain Story in Hindi)

हज़रत इमाम हुसैन को इस्लाम में शहीद का दर्जा दिया गया हैं। उनकी शहादत की कहानी हर किसी को रुला सकती है। इमाम हुसैन की याद में ही मुहर्रम के महीने में उनकी शहादत को याद किया जाता हैं। हज़रत इमाम हुसैन मानवता प्यार और अहिंसा के प्रतिक थे। उनके कर्बला में शहीद होने की किस्से कई हदीसों में आये हैं। आज के इस आर्टिकल में हम हज़रत इमाम हुसैन के बारे में तफ्सील से जानेंगे। उनके जन्म, उनकी कहानी और कर्बला के किस्से को बताने की कोशिश करेंगे। 

पानी बेस में रोजा इफ्तार पार्टी संपन्न

जालना: जमाते इस्लामी हिंद द्वारा शुक्रवार को नया जालना के पानी बेस परिसर स्थित कलश सिटी में रमजान और मानवता का संदेश इस विषय को लेकर विशेष कार्यक्रम संपन्न हुआ. साथ ही रोजा इफ्तार पार्टी भी संपन्न हुई. 

या लतिफु की फ़ज़ीलत

“या लतिफु ” यह वह इस्मे पाक हैं जिसके फायदे और बरकते बेपनाह हैं। एक हदीस हैं की एक मर्तबा एक बुज़ुर्ग बड़े परेशान और बदहाल थे। एक अजीब सा खौफ उनके दिमाग पर छाया हुआ था। उनके दिल में हर वक़्त एक खौफ सा रहता था। जिसकी वजह से उन्हें कभी आराम नहीं मिलता। उन बुज़ुर्ग ने एक दिन सोचा की हर दर्द की दवा हैं मुहम्मद के शहर में है तो फिर क्यों न मक्का मुअज़्ज़मा का सफर किया जाये। इससे हज का फ़र्ज़ भी अदा हो जायेगा और दरबारे रसूले पाक में हाज़री भी हो जाएगी और अपने मर्ज़ का इलाज भी हो जायेगा। लेकिन फिर वह सोचने लगे आखिर सफर करें तो कैसे? न सफर के खर्चे के लिए कोई पैसा है और न ही इतना खाने पीने का सामान जो पुरे सफर में चल जाये। लेकिन वह (बुज़ुर्ग) किसी भी हाल में वहां (मक्का मुअज़्ज़मा) जाना चाहते थे। उन्हें बस एक धुन सवार थी की मक्का मुअज़्ज़मा का सफर करना हैं। फिर क्या था उन्होंने खुदा का नाम लिया और चल पड़े मक्का मुअज़्ज़मा के सफर के लिए यह भी नहीं सोचा के आगे उनके साथ क्या होगा। कैसे बिना पैसे और खाने के सफर होगा।

दरगाह निर्गुण शाह का उर्स उत्साह के साथ संपन्न

जालना: जालना शहर से सटे निधानों में हजरत सैय्यद निरगुन शाह वली (रअ) के उर्स के उपलक्ष्य में मजहबी तथा समाजोपयोगी उपक्रम उत्साह के साथ संपन्न हुए. 

रमजान के आखिरी अशरे में इस्लामी स्कॉलरों के बयान

जालना: रमजान महीना बरकतों का महीना है इस महीने में ज्यादा से ज्यादा समय इबादत में गुजारने का हुक्म है. इसी के चलते हर साल की तरह इस साल भी जमीयत उलेमा हिंद की ओर से रमजान के आखिरी अशरे (१० दिन) तक इस्लामी स्कॉलरों द्वारा विविध विषयों को लेकर मार्गदर्शन किया जाएगा. जालना स्थित रेलवे स्टेशन मस्जिद में तरावीह की नाम के बाद बयान होंगे. 

ताक रातों में होगी शबे कद्र की तलाश

जालना: रमजान माह बरकतों का महीना है इस महीने में इबादत करने वालों को अन्य महीनों की तुलना में कई गुना अधिक सवाब मिलता है. रमजान में भी अल्लाह तआला ने अपने बंदो के लिए एक ऐसी रात रखी है जिसमें की गई इबादत हजार महीनों से अफजल है. लेकिन इस रात को रमजान माह के आखिरी अशरे(आखरी १० दिनों) की ताक(विषम) रातों में तलाश करने का हुक्म पैगंबर मुहम्मद (स अ)ने किया है.



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