“मन जहां डर से परे है और सिर जहां ऊंचा है; ज्ञान जहां मुक्त है और जहां दुनिया को संकीर्ण घरेलू दीवारों से छोटे छोटे टुकड़ों में बांटा नहीं गया है; जहां शब्द सच की गहराइयों से निकलते हैं, जहां थकी हुई प्रयासरत बांहें त्रुटि हीनता की तलाश में हैं, जहां कारण की स्पष्ट धारा है जो सुनसान रेतीले मृत आदत के, वीराने में अपना रास्ता खो नहीं चुकी है; जहां मन हमेशा व्यापक होते विचार और सक्रियता में, तुम्हारे जरिए आगे चलता है और आजादी के स्वर्ग में पहुंच जाता है, ओ पिता परमेश्वर मेरे देश को जागृत बनाओ”
भावार्थ- रवींद्रनाथ टैगोर ने इस कविता में सपनों के भारत का वर्णन किया है। इसमें कवि ऐसे भारत का वर्णन कर रहे हैं जिसमें कोई भी अपने स्वार्थ के लिए झूठ ना बोले। जहां ज्ञान को जाति और धर्म के नाम पर बांटा ना जाए। आजादी के बाद जो भारत किस सोच में बदलाव हो गया है सब अपने स्वार्थ के लिए जिंदा है यह सब भाव और अपने मन से हीनता का भाव भुला भुला दो मेरे देश के वासियों यह कवि कहना चाहते हैं।