
इशारों इशारों में महानगर पालिका के संकेत दे दिए रावसाहेब दानवे ने
इशारों इशारों में महानगर पालिका के संकेत दे दिए रावसाहेब दानवे ने
* संवाददाताओं के साथ औपचारिक बातचीत के तहत कई मुद्दों पर रखी बात
जालना: जालना नगर पालिका को महानगर पालिका बनाने और इसके विरोध में जालना शहर के दो दिग्गज नेता पूर्व मंत्री अर्जुन खोतकर और विधायक कैलाश गोरंट्याल दोनों ही आमने सामने है. इस बीच सोमवार को जालना में संवाददाताओं के साथ हुई औपचारिक चर्चा के दौरान केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे ने भी जालना के महानगर पालिका बनने का संकेत इशारों इशारों में दे दिए लेकिन अंत में मुझे ऐसा लगता है यह शब्द कहकर राजनीतिक गुगली छोड दी.

केंद्रीय मंत्री रावसाहेब दानवे ने प्रधानमंत्री मोदी के दोनों ही कार्यकालों में जालना शहर के विकास को चार चांद लगा दिए है. अब तो ऐसी स्थिति है की जो रावसाहेब कहेंगे वो होकर रहेगा. इसी बीच जब सोमवार को जालना में रावसाहेब ने संवाददाताओं के साथ चल रही बातचीत में जालना के महानगर पालिका बनाए जाने का मुद्दा पहले खुद ही उठाया तथा इसके फायदों के बारे में भी बताया तो सबको ऐसा लगा मानों अब जालना महानगरपालिका बन ही जाएगी. लेकिन अपनी बात खत्म करते करते दानवे ने राजनीतिक गुगली खेलते हुए जालना महानगरपालिका बनना चाहिए ऐसा मुझे लगता है वाले शब्दों का उच्चारण किया. जिसके बाद इस विवादित मुद्दे को लेकर शहर में एक बार फिर चर्चा का बाजार गर्म हो चुका है.
बतादे की रावसाहेब दानवे केंद्रीय मंत्री है लेकिन जालना शहर में केवल दो ही नेताओं का दबदबा आज भी है. इसमें पूर्व मंत्री अर्जुन खोतकर हर हाल में जालना को महानगरपालिका बनाना चाहते है. वे भले की विकास के नाम पर ऐसी मांग कर रहे हो लेकिन राजनीतिक पंडों की माने तो जालना शहर में कांग्रेस के मतदाता है जबकि ग्रामीण इलाकों में गैर कांग्रेसी मतदाता है. ऐसे में जालना के महानगरपालिका बन जाने पर झालर क्षेत्र के दर्जनों गांव में जालना से जोड़ दिए जाएंगे जिसका राजनीतिक लाभ अर्जुनराव को होगा. दूसरे यहां की महानगरपालिका के महापौर का चुनाव नगरसेवक करते है. शहर पर कब्जा पाने का यह आसान तरीका है. जबकि नगर पालिका में नगराध्यक्ष को सीधे जनता चुनती है और जालना शहर में कांग्रेस के विधायक कैलाश गोरंट्याल की लोकप्रियता को मात देना अब आसान नहीं है.
वहीं दूसरी और विधायक कैलाश गोरंट्याल जालना को महानगर पालिका नहीं बनने देने की पुरजोर वकालत करते है. इसके पीछे भी राजनीतिक कारण तो है ही लेकिन वे कई तकनीकी मुद्दों को भी सामने रखते है. जिसमें नप द्वारा प्रस्ताव दिया जाना जरूरी है. उनका यह भी कहना है कि महानगरपालिका बनने से पालिका को अपने उत्पन्न के स्रोत खुद तलाशने होंगे केंद्र और राज्य सरकार की मदद कम मिलेगी और खर्च का पूरा बोछ शहर के नागरिकों से दोगुना टैक्स वसूल कर उठाया जाएगा. जनता के हित में वे महानगरपालिका का विरोध करते आ रहे है.
अब रावसाहेब दानवे और पूर्व राज्यमंत्री अर्जुन खोतकर आज भले ही एक ही नाव में नजर आ रहे हो लेकिन सच्चाई यह भी है की ये दोनों शिंदे गट बनने के पहले तक एक दूसरे के राजनीतिक दुश्मन थे तथा दानवे को हराने की ताकत के रूप में अर्जुन खोतकर को देखा जा रहा था. वहीं कैलाश गोरंट्याल और रावसाहेब दानवे की नजदीकी जगजाहीर है. उनकी नजदीकियों को लेकर टीका टिप्पणी भी होती रहती है लेकिन दोनों भी शहर के विकास के लिए कोई कसर बाकी नहीं रखते है.
अब जालना महानगर बनेगा या नहीं यह तो भविष्य की कोख में छिपा है लेकिन रावसाहेब दानवे ने इस मुद्दे को लेकर राजनीतिक गुगली जरूरी खेली है. जो चर्चा का विषय बन चुका है.