बाल विवाह की  शिकायत होती तो  शायद बच जाती सुरेखा की जान

* बदनामी के डर से बेटी की हत्या का मामला

* गुमशुदगी का मामला भी नही किया था दर्ज

* बाल विवाह और मानवाधिकार को लेकर आज भी जनजागृती की जरुरत

*अस्थियों की डीएनए जांच की जाएगी

* हत्यारे पिता और चाचा को ३ दिन की पुलिस रिमांड

जालना: विश्व की सभ्यताओं पर ग्लोबलाइजेशन का सकारात्मक प्रभाव दिख रहा है तथा लोग पुरानी दकियानूसी प्रथाओं को पीछे छोड़ आगे बढ़ रहे है. लेकिन मंगलवार को जालना के पीरपिंलगांव की घटना यही दर्शाती है की भारत में अभी भी मानवाधिकारों को लेकर बड़े पैमाने पर जनजागृती की जरूरत है. सुरेखा की हत्या के बाद गांव वालों ने दिलेरी दिखाई यह सच है लेकिन यदि पहले ही सतर्क होकर गांव में हो रहे बाल विवाह के आयोजन को रोक देते तो शायद पुलिस घटना के पहली ही गांव में दाखिल हो गई होती. 

गौरतलब है की जालना तहसील के पीर पिंपलगांव में १७ वर्षीय बालिका गांव में ही अपने एक रिश्तेदार के साथ प्रेम कर बैठी तथा दोनों ने शिर्डी सहित अन्य जगहों पर एक साथ समय बिताया. गांव लौटने पर पिता ने रिश्तेदारों के दबाव में उसी लडके से बेटी का विवाह करने की बात मान तो ली लेकिन इस समय आधा एकड़ जमीन बेटी के नाम करने की शर्त रख दी. शर्त जब मानी नहीं गई तो पिता को और चाचा ने गांव वालों के उनका घोर अपमान होने की बात कह कर बेटी को मौत के घाट उतार दिया तथा उसकी लाश को भी जला दिया. 

* गांव वालों ने यदि समय पर सतर्कते दिखाते तो शायद पुलिस पहले ही पहुंच जाती

इसमें सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है की दोनों प्रेमी गांव से गायब थे इसको लेकर गांव भर में चर्चाएं गरमा-गरम की गई. जब दोनों गांव में वापस आए तो गांव वाले दोनों के परिजनों के रवैये को जानने के लिए उत्सुक थे. आखिर दोनों ही परिवार के लोगों ने विवाह तय कर दिया तथा मंदिर में जरूरी साज़ ओ सामान भी पहुंचा दिया गया. बस यही पर गांव वालों को सतर्क रहने की जरुरत थी. सभी को पता था की सुरेखा नाबालिग है. यदि गांव का एक भी जागृत व्यक्ति इसकी जानकारी पुलिस को देता तो शायद आज सुरेखा जिंदा होती.

* अस्थियों को डीएनए जांच के लिए भेजा जाएगा

इस बीच आज आरोपी पिता संतोष सरोदे और नामदेव सरोदे को अदालत में खड़ा करने पर दोनों को १७ दिसंबर तक की न्यायालयीन हिरासत में भेज दिया गया. जांच अधिकारी उप निरीक्षक गणेश झलवार ने बताया की जिस बोरे में राख भर कर रखी गई थी उसमें से अस्थियों को विशेषज्ञों की टीम ने अलग कर दिया है. मृतक की मां का डीएनए सैंपल हासिल कर हड्डियों को डीएनए जांच के लिए भेजा जाएगा. उन्होंने यह भी कहा की यदि पुलिस को बाल विवाह किए जाने की जानकारी पहले मिल जाती तो शायद केवल बाल विवाह को लेकर मामला दर्ज हो जाता और सुरेखा आज जिंदा भी होती. 

* फांसी का फंदा भी जला दिया

पुलिस ने इस मामले क जांच में किसी भी तरह की लापरवाही नहीं बरती है. घटनास्थल की संपूर्ण जांच विशेषज्ञों की टीम से करवाई गई है. जिस नीम के पेड़ पर सुरेखा को लटका कर मार दिया गया उस पर फंदे के निशान सहित अन्य तकनीकी मुद्दों की भी जांच की गई. गौरतलब है कि फंदा बनाने के लिए जिस रस्सी का उपयोग किया गया तो उसे भी सुरेखा के साथ आरोपियों ने जला दिया था. 

*  गुमशुदगी का मामला भी नही किया था दर्ज

इस मामले में एक खास बात यह भी है की लडका-लडकी एक साथ गए है इस बात की जानकारी परिजनों को थी. यही वजह रही की लडकी तीन दिन तक घर से गायब होने के बावजूद पुलिस थाने में गुमशुदगी की शिकायत भी दर्ज नहीं की गई थी. 

* शादी का लालच देकर बुलाया गया था वापस

इस मामले में परिजनों ने दोनों ही परिवार के सदस्यों के बीच बैठक भी करवाई जिसके बाद नजदीकी परिजनों ने लडके और लडकी से संपर्क कर उन्हें आश्वासन दिया की वे गांव लौटकर आ जाए दोनों की शादी तय हो चुकी है. बस दोनों प्रेमियों को और क्या चाहिए थे घरवाले राजी हो गए इससे बड़ी खुशी उनके लिए कुछ भी नहीं थी. लेकिन गांव लौटने के बाद जो भी हुआ वो इंसानियत पर धब्बा बन गया है जिसे मिटाने अब संभव नहीं. 

सुरेखा सरोदे