
मस्जिद का सदर बनने के लिए नियमों और शर्तों का पालन हो जरुरी – जमील मौलाना
* मस्जिद के इमाम पूरे मोहल्ले के इमाम होता है
जालना: अल्लाह के हुक्म का पालन करते हुए ही मस्जिदे बनती है. इस्लाम और शरीयत में मस्जिदों के रख रखाव और उनकी देखरेख का निजाम तय किया हुआ है. जिसमें मस्जिद के इमाम का विशेष महत्व होता है. लेकिन इन दिनों देखा यह जा रहा है की कई जगह मस्जिद कमेटी के सदर को शरियत की कम जानकारी होने के कारण वे इमाम को गुलाम समझने लगे है. इसलिए अब यह जरुरी हो गया है की किसी भी मस्जिद का सदर बनने के लिए कुछ नियमों और शर्तों का पालन किया जाए.

दरगाह राजाबाग शेर सवार के मुतवली सैयद जमील मौलाना ने इस मुद्दे को ना केवल जालना का बल्कि देश भर का सबसे बड़ा मुद्दा करार दिया और कहा की कुछ नियमों और शर्तों का पालन किया जाए तथा उसके बाद ही मस्जिद कमेटी के सदर को नियुक्त किया जाए तो जो परेशानियां मस्जिद के इंतजामों को करने में आ रही है वो पेश नहीं आएगी.
जमील मौलाना ने कहा कि चाहे जिसे भी मस्जिद का सदर बनाया जाए ये तय किया जाए की उसकी उम्र २५ से ५० साल के बीच हो तथा वो दीनदार मुसलमान हो, नमाज, रोजा का पाबंद हो, चेहरा सुन्नते रसूल (सअ) से सजा हुआ हो, मुकम्मल शरई लिबास हो, अल्फाज की अदायगी के साथ अजान व तकबीर याद हो, इमाम साहब की गैरमौजूदगी में नमाज की इमामत कर सकता हो.
जमील मौलाना ने कहा की इन सारे नियमों पर खरा उतरने और शर्तों को पूरा करने वाले को ही मस्जिद कमिटी का सदर बनाया जाएगा तो मस्जिद से जुड़ा हर काम शरीयत और इस्लाम के बनाए कानून के आधार पर होगा. मस्जिद के इमाम और मोअज्जिन को गुलाम समझने की गफलत में इन दिनों कई मस्जिदों के सदर नजर आ रहे है. उन्हें इमाम का महत्व समझना होगा. एक मस्जिद का इमाम पूरे मोहल्ले का इमाम होता है. उन्होंने कहा की इमाम को किसी भी तरह की तकलीफ देना खुद अपने हाथों से जहन्नम खरीदने के बराबर है. जमील मौलाना ने कहा की मस्जिद का सदर पढा लिखा होगा तो उसे दीन और दुनिया दोनों की जानकारी होगी तथा वह तय करेगा की इमाम और मोअज्जिन की तनख्वाह कितनी होनी चाहिए.
