
लेखक वही लिखता है जो वह देखता और महसूस करता है- डॉ राम अग्रवाल
लेखक वही लिखता है जो वह देखता और महसूस करता है- डॉ राम अग्रवाल
* सलमान रुश्दी के सैटेनिक वर्सेज पर निबंध की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा
जालना:
जालना जेईएस महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य लेखक और आलोचक डॉ रामलाल अग्रवाल की वैसे तो दर्जनों पुस्तकों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है लेकिन हाल ही में सलमान रुश्दी के सैटेनिक वर्सेज पर लिखे निबंध को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा जा रहा है. हर दिन इसके पाठकों की संख्या बढ़ने लगी है.
उनके इस कार्य को लेकर जब उनसे बात की गई तो उन्होंने कहा की भारतीय लेखक की साहित्यिक प्रतिभा की वैश्विक स्तर पर सराहना हो रही है उनके द्वारा अंग्रेजी में किए गए लेखन ने उन्हें दुनिया भर में प्रसिद्धि दिलाई है.

डॉ अग्रवाल ने 150 से अधिक निबंध लिखे, और भारतीय लेखन शैली पर तीन पुस्तकें भी लिखी है. उनके निबंध प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे, रूथ झाबवाला पर एक पुस्तक, स्टर्लिंग पब्लिशर्स, दिल्ली द्वारा प्रकाशित की गई थी. सलमान रुश्दी के सैटेनिक वर्सेज पर एक निबंध ‘मच अडो अबाउट नथिंग’ के बारे में बहुत कुछ जो वाइल्डरनेस हाउस लिटरेरी रिव्यू, यूएसए में प्रकाशित हुआ था, ने अकादमिक सर्कल में प्रशंसा प्राप्त की. उनका आउटसाइडर्स एंड इनसाइडर्स साहित्यिक आलोचना पर निबंधों और पेपरबैक द्वारा प्रकाशित समीक्षाओं का एक संग्रह है, जो उत्तर आधुनिक भारतीय अंग्रेजी साहित्य के बारे में एक सहज और स्पष्ट शैली में है.
डॉ. अग्रवाल ने कहा कि पिछले तीन दशकों के दौरान भारतीय लेखन में भारी बदलाव आया है. भारतीय लेखकों ने प्रसिद्धि प्राप्त की और साहित्यिक पुरस्कार जीते. उन्होंने कहा कि सलमान रुश्दी के मिडनाइट्स चिल्ड्रन की अभूतपूर्व सफलता ने अन्य भारतीय लेखकों को अपने अवरोधों को त्यागने और उपन्यास का उपयोग अपनी पसंद के अनुसार करने के लिए प्रोत्साहित किया.
डॉ. अग्रवाल जेईएस महाविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रिंसिपल हैं, जो जालना में एक एनजीओ चलाते हैं, उन्होंने कहा कि रूथ प्रवर झाबवाला के काम की आलोचनात्मक अंतर्दृष्टि पर भारत में किसी का ध्यान नहीं गया था. उनका बुकर पुरस्कार विजेता उपन्यास ‘हीट एंड डस्ट’ दो अलग-अलग अवधियों में पूर्व-औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक काल में होता है इस दौरान बहुत कुछ बदल गया है लेकिन भारतीयों की अंतर्निहित प्रकृति पर इसका कोई असर नहीं हुआ.
* लेखक पर कोई दबाव नहीं होना चाहिए.
डराने-धमकाने, लेखकों पर हमले और सेंसरशिप के माहौल को लेकर डॉ अग्रवाल ने कहा कि लेखक वही लिखता है जो वह देखता और महसूस करता है.
लेखकों की सेंसरशिप उनकी कला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है. उन्होंने कहा कि सभ्य दुनिया में लेखकों की स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए.